भर्तृहरि-शतकत्रयम् : नीति-शृङ्गार-वैराग्य नामक : जैनविद्वद्वर्य्य पं० धनसारगणिकृत प्राचीनतम-व्याख्यासमन्वितम्, अनेक आदर्शाधारेण विविधपाठभेदादिसमलङ्कृत्य
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भर्तृहरि-शतकत्रयम् : नीति-शृङ्गार-वैराग्य नामक : जैनविद्वद्वर्य्य पं० धनसारगणिकृत प्राचीनतम-व्याख्यासमन्वितम्, अनेक आदर्शाधारेण विविधपाठभेदादिसमलङ्कृत्य
मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स, 2002
- Other Title
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Bhartrhari's Satakatrayam
भर्तृहरि शतक त्रयम् : नीति शृङ्गार वैराग्य नामक : जैन विद्वद्वर्य्य पम्० धनसारगणि कृत प्राचीनतम व्याख्या समन्वितम्, अनेक आदर्श आधारेण विविध पाठ भेद आदि समलङ्कृत्य
शतकत्रयम् : नीति-शृङ्गार-वैराग्यात्मकं
शतक त्रयम् : नीति शृङ्गार वैराग्य आत्मकम्
नीतिशतकम्
नीति शतकम्
शृङ्गारशतकम्
शृङ्गार शतकम्
वैराग्यशतकम्
वैराग्य शतकम्
Bhartr̥hari-Śatakatraya
Nītiśataka
Śr̥ṅgāraśataka
Vairāgyaśatakam
- Title Transcription
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भर्तृहरि शतक त्रयम् : नीति शृङ्गार वैराग्य नामक : जैन विद्वद्वर्य्य पम्० धनसारगणि कृत प्राचीनतम व्याख्या समन्वितम्, अनेक आदर्श आधारेण विविध पाठ भेद आदि समलङ्कृत्य
Bhartr̥hari-Śatakatrayam : Nīti-Śr̥ṅgāra-Vairāgya nāmaka : Jainavidvadvaryya Paṃ. Dhanasāragaṇikr̥ta prācīnatama-vyākhyāsamanvitam, aneka ādarśādhāreṇa vividhapāṭhabhedādisamalaṅkr̥tya
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Note
Poems
In Sanskrit; prefatory matter in English and Hindi
Added t.p. in English
"With the oldest commentary of Jain scholar Dhanasāragaṇi, with principal variants from many manuscripts, etc. ; edited by D.D. Kosambi"--Added t.p
PUB: New Delhi : Munshiram Manoharlal Publishers
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